15 अगस्त…
आज़ादी का दिन
मेरी ज़िन्दगी का
बेहद ख़ास दिन रहा है ये
मेरे बचपन के सपनों का
एहसास रहा है ये
सुबह 4 बजे उठ जाना
फिर तिरंगा लहराने की ख़ुशी मनाना
मादरे वतन को गाना
दिल का
कभी अशफ़ाक
कभी बिस्मिल हो जाना!
पर फ़िज़ा में अभी छाया है अंधेरा
सूरज को कब से बादलों ने घेरा!
लेकिन यक़ीन है मुझे
ये अंधेरा ख़त्म हो जाएगा जल्द
ढल ही जाएगा ये मौसम सर्द
जिस सहर का इंतज़ार है सालों से
वो सहर अब दस्तक देगी!
फ़ैज़ की रूह को तसल्ली होगी
दाग़दार उजाले से मुक्ति होगी…
आज के दिन
पुराने दिनों में लौट जाता हूं
अपने कंधों पे बैग थामे
बच्चा सा बन जाता हूं मैं
बस स्कूल पहुंचने की जल्दी है
ताकि हो सके थोड़ी रिहर्सल…
आख़िर आज शहर के
डीएम के सामने परेड जो करना है
और हां, मंत्री जी भी आएंगे…
फिर स्कूल के लड्डू और जलेबी
और शाम को टाउन हॉल में ज़बरस्त डांस
लोगों की तालियों की गड़गड़ाहट में ईनाम भी
फिर स्कूल की ओर से शानदार दावत भी…
क्या दिन थे वो
उत्सव के पल छिन थे वो
कितना अच्छा था सब कुछ
कलेजे की मासूमियत में घुला मिला
सांस की डोर से सिला हुआ
तब देश में छद्म राष्ट्रवाद का दौर नहीं था
हम जो करते थे दिल से करते थे
आज की तरह महज़ दिखावे के लिए नहीं
अपनी रूह के सफाए के लिए नहीं!
काश! बचपन के वो दिन फिर लौट आते
काश, वो आज़ादी लौट आती…
जब किसी नौजवान के दिल में
लिंच कर दिए जाने का डर न होता
किसी को अपनी नागरिकता
साबित करने की ज़रूरत न होती
हिन्दुस्तानी होने का सबूत मांगने की
उनकी फ़ितरत न होती…
लेकिन हां,
मैं मायूस नहीं हूं
अच्छे दिन ज़रूर आएंगे
सियासी अच्छे दिन नहीं
वास्तविक अच्छे दिन
वैसे भी ये सच है
देखनी पड़ती है पहले सैंकड़ों बर्बादियां
फिर कहीं हासिल होती हैं मुल्क को आज़ादियां
आज़ादी के वो दिन
एक न एक दिन ज़रूर लौटकर आएंगे
जब सब हिन्दू मुसलमान नहीं,
हम सिर्फ़ और सिर्फ़ भारतीय होंगे
शायद वो कल ही आएंगे
शायद वो हर पल ही आएंगे
वे दिन फिर लौट आएंगे
हम अपनी जात
अपनी रूह से
आज़ाद कहलायेंगे!
©Afroz Alam Sahil #AfrozKiNazm