आज ईद है शायद

पर ये शायद क्यूं?

क्या कहा ईद है आज?

क्यूं कहा ईद है आज?

अजब कशमकश का दरिया है

ये कैसी ईद है आज?

ईद होती तो घर पर होते

मां के हाथों की बनी सेवइयां खाते

अरसे बाद खुद से मिलते

खुद को गाते, खिलखिलाते

लेकिन हम अपने घरों पर नहीं हैं

परिंदे परों पर नही हैं

ईद पर तो नए कपड़े पहनते हैं ना

लेकिन आज बदन पर नए कपड़े नहीं हैं

ईद होती तो ईदगाह जाते

लेकिन घरों में नमाज़ पढ़ रहे हैं

ईद की रौशनी की तमन्ना लिए

कब से अंधेरों से लड़ रहे हैं

ईद होती तो दोस्तों से गले मिलते

लेकिन गले मिलने की बात दूर

उनके क़रीब भी नहीं जा सकते

और हां,

आज न किसी बच्चे को ईदी मिली

और न उन्होंने इसकी ख़्वाहिश की

सुना है मेरे मुहल्ले के कुछ लड़के

सड़कों पर निकले थे

कुछ गरीब लोगों में सेवइयां बांटने

प्यार व मुहब्बत बांटने

लेकिन ईनाम में पुलिस की

लाठियां मिली हैं उन्हें…

ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ…

सितम का ये दस्तूर नया-नया सा है

वक़्त का क़सूर बयां-बयां सा है

पर ज़ुल्मत के ये दिन भी छंट जाएंगे

हम इस ज़िंदा (जेल) से भी निकल जाएंगे

नूर से रौशन होगी सुबह फिर से

जब कोई हाथ मिलाने से

कतराएगा नहीं…

जब कोई हमें आज़माएगा नहीं

मुझे यक़ीन है

कि अगली ईद धूमधाम से मनाएंगे…

मुझे यक़ीन है

हम फिर ईदगाह जाएंगे…

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