वो शहर का एक कोना था
जहां कुछ पेड़ सुकून की सांसों के साथ
ख़ुशी-ख़ुशी ज़िन्दगी गुज़ार रहे थे
अपनी छांव की ख़ुशियां बांटकर
ज़िन्दगी का क़र्ज़ उतार रहे थे…
तभी एक साहब को ख़ुमार आया
वहां आलीशान महल बनाने का बुख़ार आया
निशाने पर ये पेड़ आ गए
साहब ने कहा, उखाड़ डालो इन्हें
ख़त्म कर दो इनके वजूद को
नफ़रत के उस आलम में अगला हुक्म था
कि इनकी लाशों को भी दूर फेंक आओ
इन्हें लालच की भट्टी में सेंक आओ…
साहब के अधिकारी दबे पांव
इस काम पर निकल पड़े
अपनी रूह को मिटाकर
अपने ईमान को गलाकर
चंद सिक्कों के लिए
घर से चल पड़े
आख़िर साहब का हुक्म जो था
साहब के सपनों के महल के लिए
उन्होंने अपने ईमान की क़ब्र खोद दी
दुख तो इन्हें भी था
लेकिन साहब का फ़रमान टाल देने की
हिम्मत किसी में भी नहीं थी…
उन्होंने मायूस होकर पेड़ों से कहा
अब यहां से जाने का वक़्त आ गया है
किसी की हवस का महल
तुम्हारी जड़ें खा गया है
लेकिन घबराओं नहीं…
चिंता मत करो…
हम तुम्हें रहने को एक शानदार पार्क देंगे
जो इस शहर का सबसे बड़ा पार्क होगा
वो भी इको पार्क…
और हां, वहां तुम्हारा परिवार भी बड़ा होगा
बाज़ार के इस दौर में
तुम्हारा ख़रीददार भी खड़ा होगा
तुम में से हरेक के साथ
दस-दस सदस्य होंगे…
पेड़ मायूस हो गए…
अपने लिए मौत से बचाव का
तरीक़ा सोचने लगे…
काफ़ी देर सोच कर बोले
शायद तुम भूल गए
कि हम साधारण नहीं
बल्कि विरासत के पेड़ हैं
दशकों से हम
इस देश की सत्ता के केन्द्र हैं…
हमारी छांव में ही बैठकर
सत्ता बनती-बिगड़ती है
धूल उड़ती है
हवा चलती है
और तुम हमें उस जगह भेज रहे हो
जो सिर्फ़ अपनी धूल के लिए मशहूर है
और फिर कहते हो कि
“ओह! चिंता मत करो”
अधिकारियों में से जो एक
साहब का ख़ास था
ग़ुस्से में बोला…
तुम शायद अपने पुराने दिन भूल रहे हो
जब तुम्हारी हत्या कर दी जाती थी
तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े करके
बाज़ारों में बेच दिया जाता था
और तुम्हारे उन टुकड़ों को भी
लोग जलाकर खाक कर देते थे
साहब ने तुम्हें ठीक वैसे ही
मार देने को ही कहा था
वो तो हम हैं कि
तुमसे हमदर्दी दिखा रहे हैं
तुम्हें जीने का आख़िरी मौक़ा देकर
अपना फ़र्ज़ निभा रहे हैं…
या फिर ये सोच रहे हैं कि
कोई तुम्हारा हमदर्द
अदालत न चला जाए
और हमें फटकार न लग जाए
मसला जो भी हो
मरना तो तुम्हे है ही…
चाहे तुम यहां मरो
या फिर नए घर में जाकर
और फिर तुम्हारे नए घर में
दस नए पौधे भी तो लगा रहे हैं…
पेड़ों को भी लगा कि
इस ज़िद्दी व पागल साहब के
इन भक्त अधिकारियों के सामने
हमारी एक न चलेगी…
हालांकि ये किसी नरसंहार से कम नहीं
लेकिन हमारे इस नरसंहार पर कौन बोलेगा
सब तो अब साहब के भक्त हैं
इनमें किसे समझें अपना
इस दुनिया में अपना कौन है
हमारे हक़ पर हर कोई मौन है
लेकिन अपने बचाव के लिए इन पेड़ों ने
सारे हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए
साहब के अधिकारियों से सवाल कर डाला कि
इस शहर को ऑक्सीजन कौन देता है?
हम कार्बन-डाइऑक्साइड
और आपके द्वारा उगलने वाले
सभी कचरे को चूसते हैं
आपके बच्चों के लिए
दुनिया भर से जूझते हैं…
साहब के अधिकारियों ने
उनकी बातों को बीच में ही काट दिया
और साफ़ लफ़्ज़ों में कह डाला कि
तुम हमारे देश के विकास के रास्ते में आ रहे हो
एक तो विकास वैसे ही गुमशुदा हो जाता है
तुम्हें दिक्कत बढ़ाने में और मज़ा आता है?
पेड़ों को हंसी आ गई
हम ही हमेशा रास्ते में कैसे आते हैं?
हम तो सालों-साल से यहीं रह रहे हैं
और जिन्हें आप विकास कह रहे हैं
वो विनाश के अलावा और कुछ नहीं है
साहब के अधिकारी और तमतमा गए
और रोबदार आवाज़ में कह डाला
अब बस तुम यहां से जाने की तैयारी शुरू कर दो
सम्मान के साथ जाओगे
तो कहीं न कहीं रह जाओगे
वरना सहिष्णुता की तरह
ख़ुद को बस किताबों में दर्ज पाओगे
ये धमकी देकर साहब के अधिकारी चले गए
अगले दिन एक साथ कई पेड़ काट डाले गए
बाक़ी बचे पेड़ सदमे में हैं
कई पहले ही अपने डॉक्टर से संपर्क कर चुके हैं
नर्वस ब्रेकडाउन के कगार पर हैं…
साहब के महल के लिए
इनकी क़ुर्बानी तय है
तानाशाही के दौर में
कमज़ोरों के जीवन का
यही आशय है!
©Afroz Alam Sahil #AfrozKiNazm