आज सुबह
मेरी ज़िन्दगी की सबसे भारी सुबह थी
मैंने अपने बालकनी से
सामने की छत पर
एक अजीब नज़ारा देखा
एक कबूतर
जिसने ख़ुद को फांसी लगा लिया था
अब उसकी लाश लटक रही थी
दिल हैरान था
रुह परेशान थी
पर जो देखा था
वो सोलह आने सच था
जी, बिल्कुल सही सुना आपने
एक कबूतर ने फांसी लगाकर
अपनी जान दे दी थी…
आप सोच रहे होंगे कि
ये कैसे मुमकिन है
मैं कहीं पागल तो नहीं हो गया हूं
या फिर भावनाओं में बह गया हू्ं
अपने भीतर उलझकर रह गया हूं!
आख़िर एक कबूतर ख़ुद को फांसी कैसे लगा सकता है
ये उसी तरह झूठ होगा
जैसे झूठा साबित हुआ था
प्रेमचंद के नमक का दरोगा
मुझे ज़रूर कोई ग़लतफ़हमी हो रही है
ज़रूर किसी बच्चे के पतंग की डोर
इस कबूतर के गले में फंस गई होगी
और कबूतर की जान निकल गई होगी
और अब कबूतर की ये लटकती लाश
हम सबके सामने है
या मैं किसी ख़्वाब में हू्ं
या मेरे ख़्वाब मर चुके हैं!
लेकिन जनाब मैं तो होश-हवास में हूं
और पागल तो क़तई नहीं…
बस ये बात अलग है कि
मैं साबित नहीं कर पा रहा हूं
कि कबूतर ने ख़ुदकुशी की है
मेरी रुह ने मुझसे हंसी की है!
लेकिन अगर मैं किसी टीवी चैनल में होता
ये ज़रूर साबित कर देता कि
कबूतर ने ही ख़ुदकुशी की है
क़सूर पतंग या किसी डोर का नहीं
बल्कि सारा क़सूर कबूतर का ही है
उसे मांझे की ज़द में आने की
ज़रूरत ही क्या थी?
बेमौत मरने की
सूरत ही क्या थी?
क्या उसे ये पता नहीं था कि
ये मांझा बेहद ख़तरनाक है
और ऐसे ख़तरनाक मांझा चीन बनाता है
इसका दोष तो नेहरू के सर जाता है!
यक़ीनन सारा दोष कबूतर का ही है
मैं कबूतर की ख़ुदकुशी के बारे में सोच ही रहा था
कि अतीत का एक झोंका क़रीब से गुज़रा
एक बड़े मीडिया हाउस के दिन थे
मेरी नई नौकरी के पल छिन थे
एक बड़ी ख़बर थी मेरे पास
हज़ारों लोगों की ज़िन्दगी मौत से जुड़ी थी
इंसानियत की रीढ़ टूटी पड़ी थी!
एक ऐसा गांव जहां, एक भी मर्द नहीं था
कहानी क़रीब पांच हज़ार घरों की थी
बड़ी मुश्किल से कागज़ात जुटाकर लाया था
इंसाफ़ के जज़्बात बचाकर लाया था
लेकिन तब एक वाक़या हुआ था
मेरे एडिटर ने कहा था
आई डॉन्ट वांट गरीबी-शरीबी…
आराम की ज़िन्दगी में ये कैसी बेतरतीबी!
ये शब्द मेरे दिल में चुभ गए
आंसू पलकों पर आकर रूक गए
दिल में आया कि बस अभी त्याग-पत्र देकर चलता बनूं
पर नौकरी मजबूरी थी
बूढ़े बाप की सेहत बहुत ज़रूरी थी
इसलिए अकेले में बैठकर सह लिए
आंख के सब मोती बरस लिए
रोने के सिवा कुछ नहीं कर पाया
फिर अगले दिन
उसी एडिटर ने बुलाकर हड़काया
दूसरी क्या ख़बर है
आई वान्ट इन थ्री मिनट्स…
तभी मैंने कबूतर की कहानी बताई
एडिटर साहिबा उछल पड़ीं
दरअसल एक अस्तपाल में
मरीज़ कबूतरों से परेशान थे
मैनेजमेंट ने खिड़कियों पर तारों में
इलेक्ट्रिक करेन्ट ज्वाइंट कर दिये
कबूतर आने की कोशिश करते
लेकिन तार को छूते और मर जाते
यह ख़बर सुनते ही वो चिल्ला पड़ी
वाट ए फन्टास्टिक स्टोरी
आज का पेज वन हो गया
बस फटाफट ये स्टोरी कर डालो
सनसनी का अमृत मथ डालो
लेकिन हां, दोष अस्पताल पर मत डालना
बल्कि साबित करना कि
किसी बड़े सदमे से गुज़र रहे हैं
कबूतर ख़ुद यहां आकर
ख़ुदकुशी कर रहे हैं!
©Afroz Alam Sahil #AfrozKiNazm