पीएचडी में दाख़िला छोड़ने वाली पोस्ट के बाद मुझे दर्जनों लोगों ने कॉल किया और अपनी कहानी सुनाई. बताया कि उन्होंने किस तरह के शोषण को झेला है. सोच रहा हूं कि उनमें से कुछ कहानियों को आपके सामने रख दिया जाए. क्या आपकी इसमें दिलचस्पी है?

नोट : यहां यह भी स्पष्ट रहे कि देश के सारे प्रोफ़ेसर ख़राब नहीं हैं, इनमें कुछ अच्छे और कुछ बहुत अच्छे भी हैं. वैसे ही सारे रिसर्च स्कॉलर भी दूध के धुले हुए नहीं हैं. कई स्कॉलर ऐसे भी हैं, जो अपने गाइड का ही शोषण करते हैं. या उनकी अपनी बदमाशियां होती हैं. लेकिन इसके लिए भी मैं ज़िम्मेदार इन प्रोफ़ेसरों को ही मानता हूं, जो स्कॉलर को उसके टैलेंट के आधार पर नहीं, बल्कि जान-पहचान और चमचागिरी की बुनियाद पर सेलेक्ट करते हैं…

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