क्या कहा?
पिंजरा तोड़ दिया?
बग़ावत की आरी से
कुछ काटा
कुछ जोड़ दिया!
अरे, ये ख़तरनाक षडयंत्र
अकेले नहीं हो सकता है
वो ‘तनहा’, मासूम सा लड़का
इतना बड़ा काम कैसे कर सकता है?
अच्छा!
धूप की इस साज़िश में
कुछ बग़ावती खिड़कियां भी थीं
वो अकेला कब था?
‘पिंजरा तोड़’ वाली
दो लड़कियां भी थीं!
फिर तो तीनों ने मिलकर
ये काम अंजाम दिया होगा
देशद्रोह की ज़मीन का पट्टा
अपने नाम किया होगा!
नहीं, नहीं…
उनकी इतनी हैसियत नहीं
जो ख़ाकी से लड़ सकें
ज़रा भी अड़ सकें
फिर जहां उन्होंने
सत्ता, शासन और मशीनरी का
पूरा ज़ोर लगा दिया
इन्हें पिंजरे में क़ैद रखने के लिए
वहां पिंजरा तोड़ देना
वक़्त की रफ़्तार मोड़ देना
किसी के लिए भी कैसे मुमकिन है?
जबरिया जेल के इस घर को तोड़ देना
ये तो हमारी अदलिया है
जिसकी ये करामात है
ये उसकी दी हुई सौगात है
कि तीनों अब अपने घर हैं
ये तीनों अब पिंजरे से बाहर हैं
उम्मीद रखें
बाक़ी बेक़सूर भी
जल्द ही पिंजरे से बाहर होंगे
भले ही कुछ महीने और लग जाये
उम्र के कैलेंडर में
कुछ साल और जुड़ जाएं
वैसे भी इंसाफ़ के घर में
देर है, अंधेर नहीं
नई सुबह होगी और जल्दी होगी
जितना सत्य है शाम का घिर आना
उतना ही सत्य है, रात का ढल जाना!
©Afroz Alam Sahil #AfrozKiNazm