एक रात…

मच्छरदानी के अंदर

दिन भर की थकान के बाद

सोने की कोशिश में था

होश खोने की ख़्वाहिश में था

और वैसे भी

जागती आंखों में बेहोश होने से बहुत अच्छा है

कि आंख बंद कर बेहोश हो लिया जाए

आधी रात बीत चुकी थी

सोशल मीडिया पर ‘क्रांति’ करते करते

ख़ुद पर खीझ आ चुकी थी…

सोने की कगार पर था कि

तभी एक मच्छर ने कान में धीरे से कहा

चैन से सोना है तो जाग जाओ

नहीं तो! सारी रात तुम्हारा ख़ून पीऊंगा

मैंने कहा

शायद तुम भूल रहे हो

कि तुम मेरे क़ैद में हो…

हथेलियों के बंद बैग में हो

मच्छर हंसा और बोला

क़ैद में मैं नहीं, आप हैं जनाब!

दरअसल, ‘सिस्टम’ ने आपके

सोचने-समझने की सलाहियत को

ख़त्म कर दिया है

आपके ज़मीर को बेदम कर दिया है

मैं गहरी सोच में चला गया

ज़ेहन का रिमोट फ़िसल गया

सच में देश का ‘सिस्टम’ भी

मच्छर बन चुका है

और हम उस ‘सिस्टम’ पर

एक ‘काला हिट’ भी

नहीं मार पा रहे हैं…

उल्टा, महफ़ूज़ रहने के लिए

ख़ुद को क़ैद में करते जा रहे हैं

या फिर इस ‘सिस्टम’ से निकल कर

दूर देश के किसी और ‘सिस्टम’ में जा रहे हैं

हम सिर्फ़ एक सिलसिला निभा रहे हैं

खालीपन के अहसासों के साथ

ख़ुद को टूटा बिखरा पा रहे हैं

मैं ये सबकुछ सोच ही रहा था कि

मच्छर कान में ज़ोर से भुनभुनाया…

अब मैं ग़ुस्से में था

एक ज़ोर का तमाचा

खींच कर दे मारा…

मच्छर वहीं ढेर हो गया

लेकिन तमाचे की गूंज

मेरे कानों पर भी महसूस हो रही थी…

मच्छर की लाश

मेरे सामने थी

और कह रही थी

काश! ऐसा ही तमाचा

मच्छरदानी में क़ैद ‘सिस्टम’ पर भी दे मारते

या ‘काला हिट’ का एक छिड़काव

वहां भी कर देते

तो शायद! आज हम नहीं मरते…

अब रात ख़त्म हो चुकी है

अब सोशल मीडिया को हमारा इंतज़ार है

अब अवसर का भेड़िया बेक़रार है

हिन्दू-मुस्लिम जो करना है

फ़िज़ा में नफ़रत का ज़हर घोलकर

अपने हाथों ही मरना है!

आख़िर ‘सिस्टम’ को भी तो बचाना है

‘सिस्टम’ पर ‘काला हिट’ छिड़काव की बात

फिर से रात में सोची जाएगी

ये सुबह ऐसे ही गुज़र जाएगी!

रात का क्या है

धीरे से आएगी और

चुपके से चली जाएगी!

©Afroz Alam Sahil #AfrozKiNazm

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